Monday, November 18, 2024
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सजायाफ्ता नेता क्या अब आजीवन नहीं लड़ पाएंगे चुनाव? सुप्रीम कोर्ट को दी गई ये अहम सलाह

Convicted Politicians: आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले नेताओं को उम्र भर चुनाव लड़ने से वंचित करने के मामले में एमिकस क्यूरी ने सलाह दी है.

आपराधिक मामलों में सज़ा पाने वाले नेताओं को उम्र भर चुनाव लड़ने से वंचित होना पड़ सकता है. ऐसा तब होगा जब सुप्रीम कोर्ट अपने एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) की सलाह मान लेता है. 

राजनीति के अपराधीकरण को रोकने से जुड़ी एक याचिका में एमिकस क्यूरी ने कोर्ट को सलाह दी है कि सज़ायाफ्ता नेताओं को जीवन भर चुनाव नहीं लड़ने देना चाहिए. एमिकस क्यूरी वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने यह सलाह उस मामले में दी है, जिसमें जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 को चुनौती दी गई है.

याचिका में क्या कहा गया है?


वकील अश्विनी उपाध्याय की इस याचिका में कहा गया है कि इस धारा के तहत 2 साल या उससे अधिक की सज़ा पाने वाले नेता को गलत रियायत दी गई है. ऐसा सजायाफ्ता नेता अपनी सज़ा पूरी करने के 6 साल बाद चुनाव लड़ने के योग्य हो जाता है. इस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया जाना चाहिए.

इस मामले को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था. इसी मामले में इससे पहले याचिकाकर्ता की दलीलों और एमिकस की रिपोर्ट को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट बनाने का आदेश दिया था ताकि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित मुकदमों का तेज निपटारा हो सके. 

रिपोर्ट में क्या है?
हंसारिया को नई रिपोर्ट अब नेताओं को और मुश्किल स्थिति में डाल सकती है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आपराधिक मामले में सज़ा पाने वाला व्यक्ति सरकारी नौकरी के अयोग्य माना जाता है. अगर वह नौकरी पर है सज़ा मिलते ही उसे बर्खास्त कर दिया जाता है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी संस्थाओं में भी सज़ायाफ्ता व्यक्ति को किसी पद के लिए अयोग्य माना गया है. ऐसे में नेताओं को विशेष छूट देने का कोई औचित्य नहीं है. इस बात की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि सज़ा पाने वाला व्यक्ति संसद या विधानसभा में बैठ कर दूसरों के लिए कानून बनाए. 

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